मातंगी तंत्र मंत्र यंत्र साधना

मातंगी Matangi Devi Mantra Sadhana

साधना विधि

यह साधना मातंगी जयन्ती, मातंगी सिद्धि दिवस अथवा किसी भी सोमवार के दिन से शुरू की जा सकती है। यह साधना रात्रिकालीन है और इसे रात्रि में ९ बजे के बाद शुरु करना चाहिए।

सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहिनकर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके लाल आसन पर बैठ जाए। अपने सामने लाल वस्त्र बिछा ले।
इस साधना में माँ मातंगी का यंत्र व माला लेकर साधना शुरू करें ।

सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप कर ले। फिर सद्गुरुदेवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

इसके बाद साधक संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे और

“ॐ वक्रतुण्डाय हूं”

मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

देवी की 8 शक्तियां

1- रति,

2- प्रीति,

3- मनोभाव,

4- क्रिया,

5- शुधा,

6- अनंग कुसुम,

7- अनंग मदन तथा

8- मदन लसा,

देवी मातंगी की आठ शक्तियों का आवाहन पूजा करैं।

फिर साधक संक्षिप्त

भैरवपूजन सम्पन्न करे और

“ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः”

मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान मतंग भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि,
“मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से श्री मातंगी साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक ५१ माला मन्त्र जाप करूँगा। माँ ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।”

इसके बाद साधक भगवती मातंगी का सामान्य पूजन करे। कुमकुम, अक्षत, पुष्प आदि से पूजा करके कोई भी मिष्ठान्न भोग में अर्पित करे।

फिर साधक निम्न विनियोग का उच्चारण कर एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दे.

विनियोग

ॐ अस्य मन्त्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषिः विराट् छन्दः मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्तिः क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास

ॐ दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि। (सिर को स्पर्श करें)
विराट् छन्दसे नमः मुखे। (मुख को स्पर्श करें)
मातंगी देवतायै नमः हृदि। (हृदय को स्पर्श करें)
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये। (गुह्य स्थान को स्पर्श करें)
हूं शक्तये नमः पादयोः। (पैरों को स्पर्श करें)
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ। (नाभि को स्पर्श करें)
विनियोगाय नमः सर्वांगे। (सभी अंगों को स्पर्श करें)करन्यास

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः। (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

हृदयादिन्यास

ॐ ह्रां हृदयाय नमः। (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्। (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं कवचाय हूं। (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्। (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रः अस्त्राय फट्। (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

ध्यान

फिर हाथ जोड़कर माँ भगवती मातंगी का ध्यान करें

ॐ श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैर्बिभ्रतीं,
पाशं खेटमथांकुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम्।
रत्नालंकरणप्रभोज्ज्वलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां,
मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धिप्रदाम्।।

इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक निम्न मन्त्र का ५१ माला जाप करे.

मातंगी देवी मन्त्र

ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा

ohm Hreem kleem hum maatangayei phat swahaa

यह साधना दिखने में ही साधारण हो सकती है, परन्तु यह मन्त्र साधना अत्यन्त तीव्र है। मातंगी महाविद्या साधना विश्व की सर्वश्रेष्ठ साधना है,
जो साधक के दुर्भाग्य को भी बदलकर उसे भाग्यवान बना देती है। आज तक इस साधना में किसी को असफलता नहीं मिली है।
मन्त्र जाप के पश्चात मातंगी कवच का एक पाठ अवश्य ही करे।

मुख्य नाम : मातंगी।

अन्य नाम : सुमुखी, लघुश्यामा या श्यामला, उच्छिष्ट-चांडालिनी, उच्छिष्ट-मातंगी, राज-मातंगी, कर्ण-मातंगी, चंड-मातंगी, वश्य-मातंगी, मातंगेश्वरी, ज्येष्ठ-मातंगी, सारिकांबा, रत्नांबा मातंगी, वर्ताली मातंगी।

भैरव : मतंग।

सम्बन्ध -विष्णु जी
तिथि : वैशाख शुक्ल तृतीया।

कुल : श्री कुल।

दिशा : वायव्य कोण।

स्वभाव : सौम्य स्वभाव।

कार्य : सम्मोहन एवं वशीकरण, तंत्र विद्या पारंगत, संगीत तथा ललित कला निपुण।

शारीरिक वर्ण : काला या गहरा नीला।

विख्यात नाम :

उछिष्ट साम मोहिनी,

लघु श्यामा,

राज मातंगी,

वैश्य मातंगी,

चण्ड मातंगी,

कर्ण मातंगी,

सुमुखि मातंगी,

मातंगी मंत्र

“ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:”

आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए मंत्र :

“ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महा मातंगी प्रचिती दायिनी,लक्ष्मी दायिनी नमो नमः।”

सभी सुखो की प्राप्ति हेतु मंत्र :

“क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा:”

संतान प्राप्ति,पुत्र प्राप्ति, आकृषण प्राप्ति, ज्ञान प्राप्ति, आदि के लिए मातंगी देवी की साधना करें ।। मातंगी महाविद्या साधना से साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख, शत्रुओ का नाश, भोग विलास, आपार सम्पदा, वाक सिद्धि, कुंडली जागरण, आपार सिद्धियां, काल ज्ञान, इष्ट दर्शन आदि प्राप्त होते ही है ।।

लघुश्यामा मातंगी का विंशाक्षर मंत्र-

ऐं नम: उच्छिष्ट चांडालि मातंगी सर्ववशंकरि स्वाहा।

विधि- विनियोग व न्यास आदि के साथ देवी की पूजा कर 11, 21, 41 दिन या पूर्णिमा/आमावास्या से पूर्णिमा/आमावास्या तक एक लाख जप पूर्ण करें।
मंत्र से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका जप उच्छिष्ट मुंह किया जाना चाहिए। ऐसा किया भी जा सकता है लेकिन विभिन्न ग्रंथों में इसे पवित्र होकर करने का भी विधान है।
अत: साधक गुरुआज्ञानुसार जप करें। जप पू्र्ण होने के बाद महुए के फूल व लकड़ी के दशांस होम कर तर्पन व मार्जन करें।

फल- इसके प्रयोग से डाकिनी, शाकिनी एवं भूत-प्रेत बाधा नहीं पहुंचा सकते हैं। इसकी साधना से प्रसन्न होकर देवी साधक को देवतुल्य बना देती है। उसकी समस्त अभिलाषाएं पूरी होती हैं। चूंकि मातंगी वशीकरण विद्या की देवी हैं, इसलिए इसके साधक की वह शक्ति भी अद्भुत बढ़ती है। राजा-प्रजा सभी उसके वश में रहते हैं।

(४) एकोन विंशाक्षर उच्छिष्ट मातंगी तथा द्वात्रिंशदक्षरों मातंगी मंत्र

मंत्र (एक)— नम: उच्छिष्ट चांडालि मातंगी सर्ववशंकरि स्वाहा।

मंत्र (दो)—- ऊं ह्रीं ऐं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्टचांडालि श्रीमातंगेश्वरि सर्वजन वशंकरि स्वाहा।

विधि- विधिपूर्वक दैनिक पूजन के बाद निश्चित (जो साधक जप से पूर्व तय करे) समयावधि (घंटे या दिन) में दस हजार जप कर पुरश्चरण करे। उसके बाद दशांस हवन करे।सुमुखी मातंगी प्रयोग

इसमें दो मंत्र हैं जिसमें सिर्फ ई की मात्रा का अंतर है पर ऋषि दोनों के अलग-अलग हैं। इसमें फल समान है।

मंत्र(१) उच्छिष्ट चांडालिनी सुमुखी देवी महापिशाचिनी ह्रीं ठ: ठ: ठ:।

इसके ऋषि अज, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।

विधि- देवी के विधिपूर्वक पूजन के बाद जूठे मुंह आठ हजार जप करने से ही इसका पुरश्चरण होता है। साधक को धन की प्राप्ति होती है और उसका आभामंडल बढ़ता है। हवन की विधि नीचे है।

मंत्र(२) उच्छिष्ट चांडालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठ: ठ: ठ:।

इसके ऋषि भैरव, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।

विधि- इसकी कई विधियां हैं। एक में एक लाख मंत्र जप का भी विधान वर्णित है। जानकरों के अनुसार देवी के विधिपूर्वक पूजन के बाद जूठे मुंह दस हजार जप करने से ही इसका पुरश्चरण होता है और साधक को धन की प्राप्ति होती है तथा उसका आभामंडल बढ़ता है।

हवन विधि- दही मिश्रित पीली सरसो व चावल से हवन करने पर राजा-मंत्री सभी वश में हो जाते हैं। हवन से धन-समृद्धि मिलती है। खीर के हवन से विद्या प्राप्ति तथा मधु व घी युक्त पान के पत्तों के हवन से महासमृद्धि की प्राप्ति होती है।

कर्ण मातंगी साधना मंत्र

ऐं नमः श्री मातंगि अमोघे सत्यवादिनि ममकर्णे अवतर अवतर सत्यं कथय एह्येहि श्री मातंग्यै नमः।

ऐं बीज से षडंगन्यास करें।
पुरश्चरण के लिए आठ हजार की संख्या में जप करें।
कई बार प्रतिकूल ग्रह स्थिति रहने पर जप संख्या थोड़ी बढ़ानी भी पड़ती है।

41 दिन मे साधना पूर्ण होती है ।
दोनों मे से किसी एक मंत्र का जाप कर सकते है ।
लाल चन्दन की या मूँगे या रुद्राक्ष की माला मंत्र जाप के लिए श्रेष्ठ है ।
इसमें हवन भी आवश्यक नहीं है।
खीर को प्रसाद रूप में माता को चढ़ा कर उससे हवन करना अतिरिक्त ताकत देता है।
इसके साधक को माता कर्ण मातंगी भविष्य में घटने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं की जानकारी स्वप्न में देती हैं।
इच्छुक साधक को माता से प्रश्न का जवाब भी मिल जाता है। भक्ति-पूर्वक एवं निष्काम साधना करने पर माता साधक का पथ-प्रदर्शन करती हैं।

मातङ्गी यन्त्र:-

जिनके घर में सदा क्लेश हो, पति पत्नी में मतभेद बढ़ गए हों, एक दूसरे की तरफ प्रेम न हो, तरक्की न होती हो या संतान गलत दिशा में भटक गयी हो अथवा रोज कोई न कोई अपशकुन होता हो उन्हें किसी सिध्द मातङ्गी साधक से मातङ्गी यन्त्र विधि पूर्वक प्रतिष्ठित करवा कर अपने घर मे स्थापित करना चाहिए व् इसका नित्य पूजन करना चाहिए।

नोट= मातंगी महाविद्या का मंत्र ,कुंडलिनी जाग्रत सद् गुरू जी मातंगी साधक ही प्रदान कर सकते है ,अन्य किसी महाविद्या का साधक इनके मंत्र को प्रदान करने का अधिकारी नहीं है ।

मातंगी साधना Matangi Mantra



मातंगी मंत्र साधना

वर्तमान युग में, मानव जीवन के प्रारंभिक पड़ाव से अंतिम पड़ाव तक भौतिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है । व्यक्ति जब तक भौतिक जीवन का पूर्णता से निर्वाह नहीं कर लेता है, तब तक उसके मन में आसक्ति का भाव रहता ही है और जब इन इच्छाओ की पूर्ति होगी,तभी वह आध्यात्मिकता के क्षेत्र में उन्नति कर सकता है । मातंगी महाविद्या साधना एक ऐसी साधना है जिससे आप भौतिक जीवन को भोगते हुए आध्यात्म की उँचाइयो को छु सकते है । मातंगी महाविद्या साधना से साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख ,शत्रुओ का नाश, भोग विलास,आपार सम्पदा,वाक सिद्धि, कुंडली जागरण ,आपार सिद्धियां, काल ज्ञान ,इष्ट दर्शन आदि प्राप्त होते ही है
इसीलिए ऋषियों ने कहा है —मातंगी मेवत्वं पूर्ण मातंगी पुर्णतः उच्यते;
इससे यह स्पष्ट होता है की मातंगी साधना पूर्णता की साधना है । जिसने माँ मातंगी को सिद्ध कर लिया फिर उसके जीवन में कुछ अन्य सिद्ध करना शेष नहीं रह जाता । माँ मातंगी आदि सरस्वती है,जिसपे माँ मातंगी की कृपा होती है उसे स्वतः ही सम्पूर्ण वेदों, पुरानो, उपनिषदों आदि का ज्ञान हो जाता है ,उसकी वाणी में दिव्यता आ जाती है ,फिर साधक को मंत्र एवं साधना याद करने की जरुरत नहीं रहती ,उसके मुख से स्वतः ही धाराप्रवाह मंत्र उच्चारण होने लगता है ।
जब जब साधक बोलता है तो हजारो लाखो की भीड़ मंत्र मुग्ध सी उसके मुख से उच्चारित वाणी को सुनती रहती है । साधक की ख्याति संपूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल जाती है ।कोई भी उससे शास्त्रार्थ में विजयी नहीं हो सकता,वह जहाँ भी जाता है विजय प्राप्त करता ही है । मातंगी साधना से वाक सिद्धि की प्राप्ति होते है, प्रकृति साधक से सामने हाँथ जोड़े खडी रहती है, साधक जो बोलता है वो सत्य होता ही है । माँ मातंगी साधक को वो विवेक प्रदान करती है की फिर साधक पर कुबुद्धि हावी नहीं होती,उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है और ब्रह्माण्ड के समस्त रहस्य साधक के सामने प्रत्यक्ष होते ही है ।
भगवती मातंगी को उच्छिष्ट चाण्डालिनी भी कहते है,इस रूप में माँ साधक के समस्त शत्रुओ एवं विघ्नों का नाश करती है,फिर साधक के जीवन में ग्रह या अन्य बाधा का कोई असर नहीं होता । जिसे संसार में सब ठुकरा देते है,जिसे संसार में कही पर भी आसरा नहीं मिलता उसे माँ उच्छिष्ट चाण्डालिनी अपनाती है,और साधक को वो शक्ति प्रदान करती है जिससे ब्रह्माण्ड की समस्त सम्पदा साधक के सामने तुच्छ सी नजर आती है ।
महर्षि विश्वमित्र ने यहाँ तक कहा है की (मातंगी साधना में बाकि नव महाविद्याओ का समावेश स्वतः ही हो गया है )। अतः आप भी माँ मातंगी की साधना को करें जिससे आप जीवन में पूर्ण बन सके ।

साधना विधि

साधना सोमवार के दिन,पच्छिम दिशा मे मुख करके करना है।इस मे भगवती मातंगी मंत्र सिद्व माला और यंत्रमातंगी यंत्र माला लेकर ही साधना शुरु करें। वस्त्र आसन लाल रंग का हो,साधना रात्रि मे नौ बजे के बाद करे। नित्य २१ माला जाप ४१ दिनो तक करना चाहिए। देवि मातंगी वशीकरण की महाविद्या मानी जाती है,इसी मंत्र साधना से वशीकरण क्रिया भी सम्भव है। ४१ वे दिन कम से कम घी की १०८ आहूति हवन मे अर्पित करे। इस तरह से साधना पुर्ण होती है।४१ वे दिन भोजपत्र पर बनाये हुए यंत्र को चांदि के तावीज मे डालकर पहेन ले,यह एक दिव्य कवच माना जाता है।अक्षय तृतीया के दिन ”मातंगी जयंती” होती है और वैशाख पूर्णिमा ”मातंगी सिद्धि दिवस” होता है. ,इन बारहदिनों मे आप चाहे जितना मंत्र जाप कर सकते है ।

विनियोग:–अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि विराट् छन्दः मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्तिः क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास :–ॐ दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसी विराट् छन्दसे नमः मुखे मातंगी देवतायै नमः हृदि ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये हूं शक्तये नमः पादयोः क्लीं कीलकाय नमः नाभौ विनियोगाय नमः सर्वांगे
करन्यासः–ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमःॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमःॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः

हृदयादिन्यास:–ॐ ह्रां हृदयाय नमः ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ॐ ह्रूं शिखायै वषट् ॐ ह्रैं कवचाय हूं ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ॐ ह्रः अस्त्राय फट्
ध्यानः–श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैर्विभ्रतीं, पाशं खेटमथांकुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम् ।
रत्नालंकरणप्रभोज्जवलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां ,मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वाथसिद्धिप्रदाम् ।।

मंत्र- ॐ ह्रीं क्लीं हूँ मातंग्यै फट स्वाह।।

ये मंत्र साधना अत्यंत तीव्र मंत्र है । मातंगी महाविद्या साधना प्रयोग सर्वश्रेष्ठ साधना है जो साधक के जीवन को भाग्यवान बना देती है। मंत्र जाप के बाद अवश्य ही कवच का एक पाठ करे।

।। मातंगी कवच।।

श्रीदेव्युवाच :–साधु-साधु महादेव ! कथयस्व सुरेश्वर !
मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ।।
श्री ईश्वर उवाच :–श्रृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं ।
दगोपनीयं महा-देवि ! मौनी जापं समाचरेत् ।।
विनियोगः-ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋष्यादि-न्यासः-श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि -विराट् छन्दसे नमः मुखे ।श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि ।
चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

मूल_कवच_स्तोत्र

ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ।।पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ।।ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ।।अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी ।ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता
रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च । नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ।।महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ।।चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः
स-विसर्ग महा-देवि ! हृदयं पातु सर्वदा ।।नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ।।उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका ।भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ।।जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ।।नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा ।ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ।।रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।ऊर्घ्वं पातु महा-देवि ! देवानां हित-कारिणी ।।पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी ।प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ।।मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ।।

तेल मांतगी भूत भविष्य दर्शन मंत्र

तेल मातंगी प्रयोग (भूत-भविष्य दर्शन साधना)


मातंगी नौंवी महाविद्या है। ‘मतंग’ शिव का नाम है और मातंगी उनकी शक्ति है। मातंगी देवी श्याम वर्णा है। इनके मस्तक पर चंद्र इनके तीन नेत्र हैं और यह रत्नजटित सिंहासन पर विराजमान हैं। इनकी साधना सुखमय गृहस्थ, पुरुषार्थ, ओजपूर्ण वाणी तथा गुणवान पति या पत्नी की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इनकी साधना वाममार्गी साधकों में अधिक प्रचलित हैं, किंतु सात्विक लोग भी दक्षिणमार्गी पद्धति से इनकी साधना करते हैं।

देवी का सम्बन्ध नाना प्रकार के तंत्र क्रियाओं से हैं। इंद्रजाल विद्या या जादुई शक्ति कि देवी प्रदाता हैं, वाक् सिद्धि, संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में निपुण, सिद्ध विद्याओ से सम्बंधित हैं तथा अपने भक्तों को प्रदान करती हैं। देवी, केवल मात्र वचन द्वारा त्रिभुवन में समस्त प्राणिओ तथा अपने घनघोर शत्रु को भी वश करने में समर्थ हैं, जिसे सम्मोहन क्रिया कहा जाता हैं। देवी सम्मोहन विद्या की अधिष्ठात्री हैं।

साधना विधी-विधान:-

साधना शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस पर रात्री मे 9 बजे प्रारंभ करे। साधना 11 दिन का है और 12 वे दिन चमेली के तेल से 100 माला मंत्र का आहुति भी देना है। इस साधना मे वस्त्र-आसन लाल ही रंग के होने चाहिए। माला रुद्राक्ष का हो और नित्य 100 माला जाप करना पडेगा । साधना काल मे 51 माला के बाद आप आराम कर सकते है परंतु उसके बाद बाकी मंत्र जाप करना होगा। मंत्र जाप के समय एक ताम्बे के कटोरे मे चमेली का तेल भरकर सामने रखना है और मंत्र जाप करते समय कटोरे मे भरकर रखे हुए तेल के तरफ देखकर जाप करें। तो कुछ दिनो बाद तेल मे मातंगी जी का चेहरा दिखाई देगा,उसके बाद जब मातंगी जी पुर्ण रुप मे दिखाई दे तो समज जाये “आपका साधना सफल हो गया है “,इस तरहा से साधना पुर्ण होता है। साधना सिद्धि के बाद आप कभी भी प्रयोग करके जो देखना चाहते हो वह देख सकते हो ।

मंत्रः-

।। ॐ ह्रीं क्लीं हूं तैलं मातंग्यै इच्छितं दर्शय दर्शय फट् स्वाहा।

om hreem kleem hoom teilam maatangyei darshay darshay phat swaahaa

साधना मे जो तेल इस्तेमाल किया हो उसे किसी कांच के बोटल मे सम्भालकर रखे,वह तेल प्रयोग करते समय काम मे आयेगा। हो सके तो साधना मे पुर्ण सफलता हेतु तेल मातंगी यंत्र को गले मे धारण करे ।

मातंगी हवन 🔥 yagha

Matangi Devi Haven yagha 🔥

विधि- विधिपूर्वक दैनिक पूजन के बाद निश्चित (जो साधक जप से पूर्व तय करे) समयावधि (घंटे या दिन) में दस हजार जप कर पुरश्चरण करे। उसके बाद दशांस हवन करे।

फल- मधुयुक्त महुए के फूल व लकड़ी से हवन करने पर वशीकरण का प्रयोग सिद्ध होता है। मल्लिका फूल के होम से योग सिद्धि, बेल फूल के हवन से राज्य प्राप्ति, पलास के पत्ते व फूल के हवन में जन वशीकरण, गिलोय के हवन से रोगनाश, थोड़े से नीम के टुकड़ों व चावल के हवन से धन प्राप्ति, नीम के तेल से भीगे नमक से होम करने पर शत्रुनाश, केले के फल के हवन से समस्त कामनाओं की सिद्धि होती है। खैर की लकड़ी से हवन कर मधु से भीगे नमक के पुतले के दाहिने पैर की ओर हवन की अग्नि में तपाने से शत्रु वश में होता है।

हवन विधि- दही मिश्रित पीली सरसो व चावल से हवन करने पर राजा-मंत्री सभी वश में हो जाते हैं।

खीर के हवन से विद्या प्राप्ति तथा मधु व घी युक्त पान के पत्तों के हवन से महासमृद्धि की प्राप्ति होती है।

साधक गुरुआज्ञानुसार जप करें। जप पू्र्ण होने के बाद महुए के फूल व लकड़ी के दशांस होम कर तर्पन व मार्जन करें।

मातंगी तर्पण मार्जन

मातंगी तर्पण मार्जन

साधक गुरुआज्ञानुसार जप करें। जप पू्र्ण होने के बाद महुए के फूल व लकड़ी के दशांस होम कर तर्पन व मार्जन करें।

मातंगी कवच

मातंगी कवच

श्री देव्युवाच

साधु-साधु महादेव। कथयस्व सुरेश्वर।
मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ॥

श्री-देवी ने कहा – हे महादेव। हे सुरेश्वर। मनुष्यों को सर्व-सिद्धि-प्रददिव्य मातंगी-कवच अति उत्तम है, उस कवच को मुझसे कहिए।

श्री ईश्वर उवाच

श्रृणु देवि। प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं।
गोपनीयं महा-देवि। मौनी जापं समाचरेत् ॥

ईश्वर ने कहा – हे देवि। उत्तम मातंगी-कवच कहता हूँ, सुनो। हे महा-देवि। इस कवच को गुप्त रखना, मौनी होकर जप करना।

विनियोग –

ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋष्यादि-न्यास

श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि ।
विराट् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि ।
चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

मूल कवच-स्तोत्र

ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।
तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ॥
पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।
त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ॥
ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।
महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ॥
अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी ।
ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ॥
रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च ।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ॥
महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।
लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ॥
चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः ।
स-विसर्ग महा-देवि । हृदयं पातु सर्वदा ॥नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।
उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ॥
उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका ।
भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ॥
जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।
विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ॥
नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा ।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ॥
रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।
ऊर्घ्वं पातु महा-देवि । देवानां हित-कारिणी ॥
पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी ।
प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ॥
मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।
सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ॥

कवच का अर्थ

मातंगिनी देवी मेरे मस्तक की रक्षा करे, भुवनेश्वरी दो नेत्रों की, तोतला देवी दो कर्णों की, त्रिपुरा देवी मेरे बदन-मण्डल की, महा-माया मेरे कण्ठ की, माहेश्वरी मेरे हृदय की, त्रिपुरा दोनों पार्श्वों की और कामेश्वरी मेरे गुह्य-देश की रक्षा करे। चण्डी दोनों ऊरु की, रति-प्रिया जंघा की, महा-माया दोनों चरणों की और कुलेश्वरी मेरे सर्वांग की रक्षा करे। वैष्णवी सतत मेरे अंग-प्रत्यंग की रक्षा करे, मातंगी ब्रह्म-रन्घ्र में अवस्थान करके मेरी रक्षा करे। महा-पिशाचिनी बराबर मेरे ललाट की रक्षा करे, सुमुखी चक्षु की रक्षा करे, देवी नासिका की रक्षा करे। महा-पिशाचिनी वदन के पश्चाद्-भाग की रक्षा करे, लज्जा मेरे दन्त की और सम्मार्जनी-हस्ता मेरे दो ओष्ठों की रक्षा करे। हे महा-देवि। तीन ‘ठं’ मेरे चिबुक और कण्ठ की और तीन ‘ठं’ सदा मेरे हृदय-देश की रक्षा करे। लीला माँ मेरे नाभि-देश की रक्षा करे, कालिका चक्षु की रक्षा करे, चामुण्डा जठर की रक्षा करे और कात्यायनी लिंग की रक्षा करे। उग्र-तारा मेरे गुह्य की, अम्बिका मेरे पद-द्वय की, शर्वाणी मेरे दोनों बाहुओं की और चण्ड-भूषण मेरे हृदय-देश की रक्षा करे। मातृका रसना की रक्षा करे, पुष्टिका पूर्व-दिशा की तरफ, विजया दक्षिण-दिशा की तरफ और मेधा पश्चिम दिशा की तरफ मेरी रक्षा करे। श्रद्धा नैऋत्य-कोण की तरफ, लक्ष्मणा वायु-कोण की तरफ, शुभ-कारिणी मातंगी देवी ईशान-कोण की तरफ, सुवेशा अग्नि-कोण की तरफ, बाला उत्तर दिक् की तरफ और देव-वृन्द की हित-कारिणी महा-देवी ऊर्ध्व-दिक् की तरफ रक्षा करे। विश्व-रुपिणि वशिनी सर्वदा पाताल में मेरी रक्षा करे। “ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंगिन्यै फट् स्वाहा” – यह सार्द्धेकादश-वर्ण-मन्त्रमयी मातंगी सतत सकल स्थानों में मेरी रक्षा करे।

फल-श्रुति

इति ते कथितं देवि । गुह्यात् गुह्य-तरं परमं ।
त्रैलोक्य-मंगलं नाम, कवचं देव-दुर्लभम् ॥
यः इदं प्रपठेत् नित्यं, जायते सम्पदालयं ।
परमैश्वर्यमतुलं, प्राप्नुयान्नात्र संशयः ॥
गुरुमभ्यर्च्य विधि-वत्, कवचं प्रपठेद् यदि ।
ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च, वाक्-सिद्धिं लभते ध्रुवम् ॥
नित्यं तस्य तु मातंगी, महिला मंगलं चरेत् ।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च, ये देवा सुर-सत्तमाः ॥
ब्रह्म-राक्षस-वेतालाः, ग्रहाद्या भूत-जातयः ।
तं दृष्ट्वा साधकं देवि । लज्जा-युक्ता भवन्ति ते ॥
कवचं धारयेद् यस्तु, सर्वां सिद्धि लभेद् ध्रुवं ।
राजानोऽपि च दासत्वं, षट्-कर्माणि च साधयेत् ॥
सिद्धो भवति सर्वत्र, किमन्यैर्बहु-भाषितैः ।
इदं कवचमज्ञात्वा, मातंगीं यो भजेन्नरः ॥
झल्पायुर्निधनो मूर्खो, भवत्येव न संशयः ।
गुरौ भक्तिः सदा कार्या, कवचे च दृढा मतिः ॥हे देवि। तुमसे मैंने यह “त्रैलोक्य-मोहन” नाम का अति गुह्य देव दुर्लभ कवच कहा है। जो नित्य इसका पाठ करता है, वह सम्पत्ति का आधार होता है और अतुल परमैश्वर्य प्राप्त करता है, इसमें संशय नहीं है। यथा-विधि गुरु-पूजा करके उक्त कवच का पाठ करने से ऐश्वर्य, सु-कवित्व और वाक्-सिद्धि निश्चय ही प्राप्त की जा सकती है। मातंगी उसे नित्य नारी-संग दिलाती है। हे देवि। ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, दूसरे प्रधान देव-वृन्द, ब्रह्म-राक्षस, वैताल, ग्रह आदि भूत-गण उस साधक को देखकर लज्जित होते हैं। जो व्यक्ति इस कवच को धारण करता है, वह सर्व-सिद्धियाँ लाभ करता है। नृपति-गण उसका दासत्व करते हैं। वह षट्-कर्म साधन कर सकता है। अधिक क्या, वह सर्वत्र सिद्ध होता है। इस कवच को न जानकर, जो मातंगी की पूजा करता है, वह अल्पायु, धन-हीन और मूर्ख होता है। गुरु-भक्ति सर्वदा परमावश्यक है। इस कवच पर भी दृढ़ मति अर्थात् पूर्ण विश्वास रखना परम कर्तव्य है। फिर मातंगी देवी सर्व-सिद्धियाँ प्रदान करती है।

मातंगी आरती /गायत्री मंत्र

मातंगी आरती /गायत्री

आरती माँ मातंगी देवी जी की🌞ओम जय मातंगी मा (2)
द्विजवर सुखकर सगी, धमांधुरा नदी
ओम जयो जयो मा मातंगी मा
विप्रमात तुं विष्णुशक्ति तुं द्विज्ज्न उध्धरती मा…(2)
दया द्रष्टि करी प्रीते (2) द्विकुल भय हरती… ओम
पंचावन पर स्वार, अष्टदश भुजधारी मा…(2)
आयुध चक्र गदादि (2) प्रभुमय बलधारी… ओम
निगम नीतिना वचन प्रमाणे, तुं मा धर्मतणी मा…(2)
धर्मारण्यनी देवी (2) धर्मधरा वरती… ओम
आर्यावर्तमां धर्म स्थापवा, अधर्मने पाप हरवा मा…(2)
सितापति श्री रामे (2) श्रेय सकल करवा… ओम
विष्णु विरंची शिवजी, तव अर्चन करता मा…(2)
धर्म विद्यात्री तुजने (2) स्थापी शुभ करता… ओम
शोभे सुंदर रूप, रत्न जडित पटथी मा…(2)
स्मित मुख कमले ज्योति (2) करूणा द्रष्टिथी… ओम
धर्मक्षेत्रनी अधिदेवी तुं मातंगी लक्ष्मी मा…(2)
हरि नीकटे नीत वसती (2) तुं साक्षात लक्ष्मी मा…(2)
हरिप्रिया तुं सत्य विभुति लक्ष्मीरूप धरा मा…(2)
तव पद गुर्जर पावन (2) दश दिश वसुंधरा… ओम
मोढेश्वरी तुं मोढ ज्ञातिनी काम दुधा माता मा…(2)
मोढवृक्षना शीशुनी (2) तुं सर्जक माता… ओम
त्रिगुणा तत्व मयी, चींतामणी फूलदा मा…(2)
धर्म क्षेत्र धर्मेश्वरी (2) धर्मधरा वरदा… ओम
यर्जु विधिथी पूजा, तुज विप्रो करता मा…(2)
साम रूचायो भणता (2) प्रसन्नता वरदा…ओम
आसुर विधि ने विप्र मा आरती जयकारीपूजन थाल ने विधि (2)
तुज पर वारी…ओम
मोढेश्वरीनी आरती जे कोई गाशे, मा जे भावे गाशे,
दु:ख दरिद्र पापहरता, जन्म सफल थाशे…ओम

💥आप सभी भक्तों को वैशाख माष शुक्ल पक्ष अक्षय तृतीया तिथि परशुराम जयंती माँ मातंगी जयंती अन्नपूर्णा माता जयंती श्री मातंगी जयंती गंगा अवतरण की हार्दिक शुभकामनाएँ💥
💥शुभ भौमवार💥जय मातंगी माँ💥

मातङ्गी गायत्री:-

ॐ शुकप्रियाये विद्महे श्रीकामेश्वर्ये धीमहि
तन्न: श्यामा प्रचोदयात।

मातंगी Matangi Devi

मातंगी देवी तंत्र मंत्र साधना हवन


Das Maha Vidhaya 10 Great goddess of universe.

  1. महाकाली तंत्र मंत्र साधना
  2. तारा देवी मंत्र तंत्र साधना
  3. त्रिपुरा सुंदरी तंत्र मंत्र साधना
  4. भुव्ने्श्वरी देवी तंत्र मंत्र साधना
  5. भैरवी देवी/लिंग भैरवी मंत्र साधना
  6. छिन्नमस्ता देवी तंत्र मंत्र साधना
  7. घुमावती देवी तंत्र मंत्र साधना
  8. बगलामुखी मंत्र साधना
  9. मातंगी देवी तंत्र मंत्र साधना
  10. कमला लक्ष्मी देवी मंत्र साधना